Book Details
Title Ahankar
Author Charan Singh Gupta
Year 2017
Binding Paperback
Pages 150
ISBN10, ISBN13 9351282244, 9789351282242
Short Description
The Title 'Ahankar written/authored/edited by Charan Singh Gupta', published in the year 2017. The ISBN 9789351282242 is assigned to the PaperBack version of this title. This book has total of pp. 150 (Pages). The publisher of this title is Kalpaz Publications. This Book is in Hindi. The subject of this book is Hindi / Novel. POD
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Hindi (language) | 2017 (year) |
 
9789351282242

  
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ABOUT THE BOOK

मनुष्य  के  मन  में  अहंकार  अर्थात्  दंभ  उत्पन्न  होने  के  विभिन्न  कारण  हो  सकते  हैं।  कारण  कोई  भी  हो  अहंकार  से  हठधर्मिता  और  अदूरदर्शिता  पनपती  है  और  अंत  में  यही  मनुष्य  को  विनाश  के  पथ  पर  अग्रसर  कर  देती  हैं।  अहंकार  वश  मनुष्य  में  अपने  को  हमेशा  सही  मानने  की  इच्छा  इतनी  बलवती  हो  जाती  है  कि  वह  अपने  किसी  भी  सगे  संबंधी,  रिश्तेदार  या  खैर  ख्वाह  की  कोई  भी  नेक  सलाह  पर  विचार  करने  में  भी  अपनी  भलाई  नहीं  समझता  और  अंधे  की  तरह  गर्त  के  गड्ढे  की  ओर  बढ़ता  जाता  है।  आखिरी  मुहाने  पर  पहुंचकर  जब  उसे  अपने  पैरों  के  नीचे  जमीन  महसूस  नहीं  होती  तो  वह  सब  कुछ  खोया  पाकर  पश्चाताप  करने  लगता  है।  ऐसा  ही  उपन्यास  के  मुख्य  पात्रा  के  साथ  हुआ।  उसके  अहंकार  ने  धन  और  वैभव  खोने  के  बाद  उसे  अपना  वंश  खोने  के  कगार  पर  लाकर  खड़ा  कर  दिया  था।

ABOUT THE AUTHOR

चरण  सिंह  गुप्ता मेरा  जन्म  02  मार्च  1946  को  नारायणा  गाँव  में  हुआ  था।  मेरी  प्रारम्भिक  शिक्षा,  पाँचवी  तक,  गाँव  के  ही  सरकारी  मिडिल  स्कूल  में  हुई।  इसके  बाद  इंडियन  एग्रीक्ल्चर  रिसर्च  इंस्टीच्युट  पूसा  के  स्कूल  से  हायर  सैकेंडरी  करके,  सन्  1963  में,  मैं  भारतीय  वायु  सेना  में  भर्ती  हो  गया।  वायु  सेना  की  सोलह  साल  की  नौकरी  के  दौरान  मैंने  जोधपुर  विश्व  विद्यालय  से  स्नातकोत्तर  की  डिग्री  हासिल  की  तथा  वायु  सेना  से  डिप्लोमा  इन  इलैक्ट्रोनिक्स  का  हकदार  भी  बना।  मार्च  1980  में  भारतीय  वायु  सेना  की  नौकरी  छोड़कर  मैंने  भारतीय  स्टेट  बैंक  में  नौकरी  कर  ली।  बैंक  की  नौकरी  में  रहते  हुए  सन्  2000  में  जब  वहाँ  हिन्दी  प्रतियोगिता  हुई  तो  मेरे  द्वारा  लिखित  कहानी की प्रविष्ठी  को प्रथम  स्थान  प्राप्त  हुआ।  यहीं  मेरे  अन्दर कहानियाँ  लिखने  की  जागृति  पैदा  हुई  तथा  फिर  लगातार  छः  वर्षों  तक,  जब  सन्  2006  में  मैं  बैंक  से  रिटायर  हो  गया,  मेरी  कहानियों  की  प्रविष्ठियों  को  हिन्दी  दिवस  प्रतियोगिताओं  में  प्रथम  पुरस्कार  ही  मिलता  रहा। मैंने  अधिकतर उन्हीं  विषयों  पर  कहानियाँ लिखी  हैं  जो घटनाएँ,  जाने अनजाने में,  मन  को छू गई  हैं  तथा  जिन्होंने  मुझे  कुछ  सोचने  पर  मजबूर  कर  दिया  है।  आशा  है  आपको  यह  उपन्यास  “अहंकार”  मेरे  अन्य  उपन्यास  आत्म-तृप्ति  तथा  ठूँठ  जैसा  रोचक  एवं  पठनीय  लगेगा।

CONTENTS

भूमिका 9
समीक्षा 13
1. एक महल सपनों का 15
2. हवस 27
3. अहंकार का पर्दापण 41
4. अहंकारी का पतन 75
5. समाधान 99
6. मधुर मिलन 125

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